भाई लोग, आप तो जानते ही हैं कि हमारे उत्तर प्रदेश में भी सड़कें कितनी जरूरी हैं, ठीक वैसे ही बिहार में अब Bihar National Highways का पूरा खेल बदलने वाला है। केंद्र सरकार ने नया नियम बना दिया है कि राज्य सरकारें अब चार लेन वाली या उससे बड़ी सड़कों का निर्माण या देखभाल नहीं कर पाएंगी, सारा काम NHAI यानी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के हाथ में चला जाएगा। ये फैसला इसलिए लिया गया है ताकि पूरे देश की सड़कें एक जैसी मजबूत और तेज बनें, लेकिन बिहार जैसे राज्य अब केंद्र पर ज्यादा निर्भर हो जाएंगे, जहां सड़कें रोजगार और व्यापार की लाइफलाइन हैं। और हां, इस साल 2025-26 के लिए केंद्र ने बिहार को 33 हजार करोड़ से ज्यादा दिए हैं, लेकिन नई नीति से राज्य को इसका आर्थिक फायदा नहीं मिलेगा, सोचो कितना बड़ा बदलाव है न?
अरे, अच्छी बात ये है कि Infrastructure विकास में अब तेजी आएगी, क्योंकि NHAI के पास ढेर सारे पैसे और एक्सपर्ट लोग हैं, जो सड़कों को विश्व स्तरीय बना सकते हैं। राज्य सरकारों को अब सिर्फ छोटी-छोटी सड़कों पर फोकस करना पड़ेगा, जो एक राज्य से दूसरे में जाती हैं, और ये फैसला केंद्रीय मंत्रालय की बड़ी मीटिंग में हुआ है। इससे सड़क प्रोजेक्ट्स की क्वालिटी सुधरेगी, लेकिन बिहार को पैसे की तंगी का सामना करना पड़ सकता है, जैसे हमारे यहां भी कभी-कभी बजट की दिक्कत होती है। कुल मिलाकर, ये नीति देश को जोड़ने वाली है, लेकिन राज्य की अपनी आजादी पर असर डालेगी, क्या कहते हो, सही दिशा है या नहीं?
Bihar National Highway की मौजूदा स्थिति
बिहार में कुल लगभग 6000 किलोमीटर से अधिक national highways फैले हुए हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा का प्रबंधन राज्य सरकार के हाथों में है। वर्तमान में NHAI केवल कुछ हिस्सों का रखरखाव करता है, जबकि बाकी पर राज्य की एजेंसियां काम कर रही हैं। इस स्थिति में बदलाव आ रहा है, जहां सभी प्रमुख सड़कों को केंद्र को सौंपना अनिवार्य होगा। इससे बिहार की सड़क व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा, जो विकास की गति को प्रभावित कर सकता है।

राज्य में कई projects चल रहे हैं, जिनमें से करीब 900 किलोमीटर सड़कों का निर्माण या मरम्मत राज्य स्तर पर हो रहा है। अब इन सभी को transfer करने की प्रक्रिया शुरू होगी, जो राज्य के budget को सीधे प्रभावित करेगी। बिहार सरकार को इन सड़कों से मिलने वाली आर्थिक हिस्सेदारी भी छिन जाएगी, जो पहले 9 प्रतिशत तक होती थी। यह बदलाव न केवल प्रशासनिक है, बल्कि राज्य की विकास योजनाओं को नई दिशा देगा।
राज्य पर पड़ने वाले आर्थिक और प्रशासनिक प्रभाव
इस नीति से बिहार को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि सड़क निर्माण से जुड़ी funding अब केंद्र के माध्यम से आएगी। राज्य सरकार पहले इन परियोजनाओं से लाभ कमाती थी, लेकिन अब NHAI के अधीन आने से यह लाभ समाप्त हो जाएगा। इससे राज्य की budget योजना में बदलाव जरूरी होगा, और विकास कार्यों में देरी की आशंका है। बिहार जैसे राज्य, जहां सड़कें अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, अब केंद्र की नीतियों पर निर्भर रहेंगे।
प्रशासनिक स्तर पर, सड़कों का inspection अब संयुक्त रूप से किया जाएगा, जिसमें केंद्र और राज्य के अधिकारी शामिल होंगे। यदि transfer प्रक्रिया में देरी हुई, तो केंद्र से मिलने वाली अनुदान राशि पर रोक लग सकती है। यह व्यवस्था राज्य की स्वतंत्रता को सीमित करेगी, लेकिन साथ ही सड़कों की गुणवत्ता में सुधार ला सकती है। बिहार सरकार को अब अपनी योजनाओं को केंद्र के साथ समन्वित करना होगा, जो एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
सड़कों के हस्तांतरण की प्रक्रिया और नियम
भाई लोग, आप तो जानते हैं कि हमारे उत्तर प्रदेश में भी सड़कें बनवाने की प्रक्रिया कितनी जटिल होती है, ठीक वैसे ही बिहार में अब National Highways की हस्तांतरण की नई व्यवस्था शुरू होने वाली है, जहां राज्य सरकार को उन सड़कों की लिस्ट बनानी पड़ेगी जो NHAI को सौंपी जाएंगी। ये सब पारदर्शी तरीके से होगा, मतलब Inspection के बाद सिर्फ 15 दिनों में ट्रांसफर करना जरूरी है, वरना केंद्र सरकार अनुदान रोक सकती है, जैसे हमारे यहां कभी फंड अटक जाते हैं। बिहार में ये प्रक्रिया जल्द चालू हो जाएगी, जो कई चल रही परियोजनाओं को रोक देगी और राज्य को केंद्र के साथ मिलकर काम करना पड़ेगा। सोचो, ये बदलाव कितना बड़ा है, जो सड़कों की देखभाल को पूरी तरह बदल देगा और विकास की रफ्तार पर असर डालेगा।
अरे, हस्तांतरण में वो सड़कें शामिल हैं जो चार लेन या उससे ज्यादा चौड़ी हैं, और अब उनका पूरा मेंटेनेंस केंद्र के जिम्मे होगा, राज्य सरकार को तो बस छोटी सड़कों पर ध्यान देना है। वर्तमान में चल रहे प्रोजेक्ट्स को भी रोककर NHAI को सौंपना पड़ेगा, जैसे बिहार की प्रस्तावित एक्सप्रेसवे योजनाएं अब राज्य की बजाय केंद्र चलाएगा, क्या मजा आएगा न अगर सड़कें जल्दी बनें? इससे राज्य और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत पड़ेगी, ताकि कोई दिक्कत न हो, जैसे हमारे यहां गांवों में सड़क बनवाने के लिए अफसरों से बात करनी पड़ती है। कुल मिलाकर, ये नियम देश को जोड़ने वाले हैं, लेकिन बिहार वालों को अपनी योजनाओं को नए सिरे से सोचना होगा, क्या कहते हो?
भविष्य में केंद्र-राज्य संबंधों पर असर
इस फैसले से केंद्र और राज्यों के बीच coordination और मजबूत होगी, क्योंकि सड़क विकास अब एकीकृत रूप से संचालित होगा। बिहार जैसे राज्यों को अपनी development योजनाओं को केंद्र की नीतियों के अनुरूप ढालना होगा। इससे देशभर में infrastructure की गुणवत्ता में एकरूपता आएगी, लेकिन राज्यों की आर्थिक स्वतंत्रता कम हो सकती है। आने वाले वर्षों में यह नीति विकास की नई दिशा तय करेगी।
हालांकि, इस बदलाव से बिहार की budget और योजना प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण बनेगी, क्योंकि केंद्र पर पूर्ण निर्भरता बढ़ेगी। राज्य सरकारों को अब संसाधनों की साझेदारी पर ध्यान देना होगा, जो विकास की गति को बनाए रखने के लिए जरूरी है। यह नीति न केवल बिहार बल्कि अन्य राज्यों जैसे झारखंड और ओडिशा को भी प्रभावित करेगी, जहां समान नियम लागू होंगे। भविष्य में केंद्र-राज्य संबंधों की मजबूती इस नीति की सफलता पर निर्भर करेगी।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार की इस नई नीति से बिहार में national highways का प्रबंधन पूरी तरह बदल जाएगा, जो राज्य की विकास यात्रा को नई दिशा देगा। हालांकि, इससे आर्थिक लाभ की हानि और प्रशासनिक चुनौतियां सामने आएंगी, लेकिन NHAI के नेतृत्व में सड़कों की गुणवत्ता और गति में सुधार की उम्मीद है। यह फैसला देश के infrastructure को मजबूत बनाने की दिशा में एक कदम है, लेकिन राज्यों की स्वायत्तता को बनाए रखने की जरूरत पर जोर देता है।
क्या यह नीति वाकई बिहार जैसे राज्यों के हित में है, या इससे केंद्र की शक्ति और बढ़ेगी? पाठकों को इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि विकास की कुंजी केंद्र और राज्य के बीच संतुलित coordination में छिपी है। आने वाले समय में इस नीति के परिणाम राज्य की अर्थव्यवस्था और सड़क नेटवर्क पर गहरा असर डालेंगे, जो हमें संघीय ढांचे की मजबूती पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं।
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